चतुर्विध प्राणियों में मनुष्य को ईश्वर ने देवताओं के बाद सर्वश्रेष्ठ बनाया है। उसको सर्वश्रेष्ठ बनाये रखने के लिए उसने उसमें एक अनोखी प्रतिभा या प्रज्ञा भर दी, जिसके कारण कभी-कभी वह सुरत्व के समान नरत्व को प्रतिष्ठित करने में सफलता प्राप्त कर लेता है। जैसे राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, गाँधी। उस प्रतिभा को उभारने के लिए विद्या अथवा शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है उसी विद्या अथवा शिक्षा को ग्रहण करने या कराने के लिए ही विद्यालय प्र्रतिष्ठापित किए जाते हैं। प्रतिष्ठापित विद्यालयों में से भली भांति विविध प्रकार की पढ़ाई करके या शिक्षा लेकर बालक एवं किशोर स्वयं के व्यक्तित्व विकास के साथ अपने कुल, खानदान, सम्बन्धी, ग्राम, नगर, प्रदेश एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहँुचाने में कामयाब होते हैं। विद्यालय या शिक्षा-सदन टकसाल के समान होते हैं जहाॅ पर मानवीय मूल्यों से भरपूर योग्य युवक राष्ट्र के लिए विनिर्मित होते हैं। इसी सृजनात्मकता को ध्यान में रखकर शिक्षा-संस्थाओं की अनिवार्यता बढ़ जाती हैं, लोक कल्याण की भावना से मानव प्रकल्पित ज्ञान-दिवाकर की किरणों से व्यक्ति एवं समाज के अन्दर घुसी हुई तमिसा को हटाने के लिए विद्या-गृह साधन या उपाय के रूप में माने जाते है। इन्ही साधनों या उपायों के मूर्तरूप शैक्षणिक केन्द्र समाज एवं सरकार द्वारा स्थापित किये जाते हैं।
स्थानीय शैक्षिक अवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चिल्डेªन एकेडमी सीनियर सेकण्डरी स्कूल की स्थापना विश्वविद्यालय मार्ग, अनन्तपुर (रीवा) में वर्ष 2000 में चिरंजीव- महेश प्रसाद शुक्ल ने क्रमशः निम्नतर कक्षाओं से लेकर उच्चत्तर कक्षाओं तक कराई। अध्यवसाय एवं अथक प्रयास से यह विद्यालय अपनी पूर्व कल्पित ऊँचाई को छू रहा है। इस विद्यालय को ऊँचाई तक ले जाने के लिए यहाँ के संचालक, प्राचार्य , प्रधानाध्यापक एवं शिक्षकों को धन्यवाद देता हूं।